पर्यावरण दिवस विशेष: गौरैया से लेकर गिलहरी तक... देखते-देखते कितनी चीजें गायब हो रही हैं!

आंगन में चहकती गौरैया याद आती है. अब शायद आंगन खाली दिखते होंगे. यहां तक कि बचपन में मुंडेर पर बैठे जिस कौवे की कर्कश आवाज परेशान करती थी, वो आवाज भी अब कम ही सुनाई देती है.

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